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पा꣣वमानीः꣡ स्व꣣स्त्य꣡य꣢नी꣣स्ता꣡भि꣢र्गच्छति नान्द꣣न꣢म् । पु꣡ण्या꣢ꣳश्च भ꣣क्षा꣡न्भ꣢क्षयत्यमृत꣣त्वं꣡ च꣢ गच्छति ॥१३०३

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स्वर-रहित-मन्त्र

पावमानीः स्वस्त्ययनीस्ताभिर्गच्छति नान्दनम् । पुण्याꣳश्च भक्षान्भक्षयत्यमृतत्वं च गच्छति ॥१३०३

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पावमानीः꣣ । स्व꣣स्त्य꣡य꣢नीः । स्व꣣स्ति । अ꣡य꣢꣯नीः । ता꣡भिः꣢꣯ । ग꣣च्छति । नान्दन꣢म् । पु꣡ण्या꣢꣯न् । च꣣ । भक्षा꣢न् । भ꣣क्षयति । अमृतत्व꣢म् । अ꣣ । मृतत्व꣢म् । च꣣ । गच्छति ॥१३०३॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1303 | (कौथोम) 5 » 2 » 8 » 6 | (रानायाणीय) 10 » 7 » 1 » 6


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आगे वेदाध्ययन का फल वर्णित करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

(पावमानीः) पवमान देवतावाली ऋचाएँ (स्वस्त्ययनीः) कल्याण करनेवाली हैं। (ताभिः) उन ऋचाओं से वेदों का अध्ययन करनेवाला (नान्दनम्) आनन्द के धाम मोक्ष को (गच्छति) पा लेता है, (पुण्यान् च) और पुण्यों से प्राप्त (भक्षान्) भोगों को (भक्षयति) भोगता है, (अमृतत्वं च) और अमृतस्वरूप को (गच्छति) प्राप्त कर लेता है। मोक्षधाम का वर्णन वेद में इस प्रकार से किया गया है—‘जहाँ आनन्द हैं, मोद हैं, तृप्तियाँ हैं, प्रमोद हैं, जहाँ मनोरथ करनेवाले के मनोरथ पूर्ण होते हैं, उस मोक्षधाम में ले जाकर मुझे अमर कर दो। हे इन्दु ! हे रसागार सोम परमात्मन् ! मुझ आत्मा के लिए तुम आनन्द को चुआओ’ (ऋ० ९।११३।११) ॥६॥

भावार्थभाषाः -

पावमानी ऋचाओं के अर्थज्ञानपूर्वक गान से और तदनुकूल आचरण करने से अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति होती है ॥६॥ इस खण्ड में पावमानी ऋचाओं के अध्ययन का फल अमृतत्व आदि वर्णित होने से और पूर्व खण्ड में परमात्मा-जीवात्मा का विषय वर्णित होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ दशम अध्याय में सप्तम खण्ड समाप्त ॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ वेदाध्यायनस्य फलं वर्णयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

(पावमानीः) पवमानदेवताका ऋचः (स्वस्त्ययनीः) कल्याणकारिण्यः सन्ति, (ताभिः) ऋग्भिः वेदाध्येता (नान्दनम्) आनन्दधाम मोक्षम्। [नन्दयतीति नन्दनः, स एव नान्दनः स्वार्थिकस्तद्धितप्रत्ययः।] (गच्छति) प्राप्नोति, (पुण्यान् च) पुण्यप्राप्तान् च (भक्षान्) भोगान् (भक्षयति) भुङ्क्ते, (अमृतत्वं च) अमृतस्वरूपं च (गच्छति) विन्दति ॥ मोक्षधाम चैवं वर्णयति श्रुतिः—यत्रा॑न॒न्दाश्च॒ मोदा॑श्च॒ मुदः॑ प्र॒मुद॒ आस॑ते। काम॑स्य॒ यत्रा॒प्ताः कामा॒स्तत्र माम॒मृतं॑ कृ॒धीन्द्रा॑येन्दो परि॑ स्रव ॥ ऋ० ९।११३।११ इति ॥६॥

भावार्थभाषाः -

पावमानीनामृचामर्थज्ञानपुरःसरं गानेन तदनुकूलाचरणेन चाभ्युदयनिःश्रेयसयोः प्राप्तिर्जायते ॥६॥ अस्मिन् खण्डे पावमानीनामृचामध्ययनफलस्यामृतत्वादेर्वर्णनात् पूर्वस्मिन् खण्डे च परमात्मजीवात्मविषयवर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्तीति वेद्यम् ॥